ब्लाऊज उतारने की कोशिश

मैं उन दिनों गांव में अपनी दीदी के घर आया हुआ था। उनके पास काफ़ी जमीन थी, जीजा जी की उससे अच्छी आमदनी थी। उनकी लड़की कमली भी जवान हो चली थी। कमली बहुत तेज लड़की थी, बहुत समझदार भी थी। मर्दों को कैसे बेवकूफ़ बनाना है और कौन सा काम कब निकालना है वो ये अच्छी तरह जानती थी।

एक दिन सवेरे जीजू की तबीयत खराब होने पर उन्हें दीदी शहर में हमारे यहाँ पापा के पास ले गई। हमारे गांव से एक ही बस दोपहर को जाती थी और वही बस दूसरे दिन दोपहर को चल कर शाम तक गांव आती थी।

कमली और मैं दीदी और जीजू को बस पर छोड़ कर वापस लौट रहे थे। मुझे उसे रास्ते में छेड़ने का मन हो आया। मैंने उसके चूतड़ पर हल्की सी चिमटी भर दी। उसने मुझे घूर कर देखा और बोली,"खबरदार जो मेरे ढूंगे पर चिमटी भरी..."

"कम्मो, वो तो ऐसे ही भर दी थी... तेरे ढूंगे बड़े गोल मटोल है ना..."

"अरे वाह... गोल मटोल तो मेरे में बहुत सी चीज़ें है... तो क्या सभी को चिमटी भरेगा?"

"तू बोल तो सही... मुझे तो मजा ही आयेगा ना..." मैंने उसे और छेड़ा।

"मामू सा... म्हारे से परे ही रहियो... अब ना छेड़ियो..."

"कमली ! थारे बदन में कांई कांटा उगाय राखी है का"

"बस, अब जुबान बंद राख... नहीं तो फ़ेर देख लियो..." उसकी सीधी भाषा से मुझे लगा कि यह पटने वाली नहीं है। फिर भी मैंने कोशिश की... उसकी पीठ पर मैंने अपनी अन्गुली घुमाई। वो गुदगुदी के मारे चिहुंक उठी।

"ना कर रे... मने गुदगुदी होवे..."

"और करूँ कई ... मने भी बड़ो ही मजो आवै..." और मैंने उसकी पीठ पर अंगुलियाँ फिर घुमाई। उसकी नजरे मुझ पर जैसे गड़ गई, मुझे उसकी आँखों में अब शरारत नहीं कुछ और ही नजर आने लगा था।

"मामू सा... मजा तो घणो आवै... पर कोई देख लेवेगो... घरे चाल ने फिर करियो..."

उसे मजा आने लगा है यह सोच कर एक बार तो मेरा लण्ड खड़ा हो गया था। उसका मूड परखने के लिये रास्ते में मैंने दो तीन बार उसके चूतड़ो पर हाथ भी लगाया, पर उसने कोई विरोध नहीं किया।

घर पहुंचते ही जैसे वो सब कुछ भूल गई। उसने जाते ही सबसे पहले खाना बनाया फिर नहाने चली गई। मैंने बात आई गई समझते हुये मैंने अपने कपड़े बदले और बनियान और पजामा पहन कर पढ़ने बैठ गया। पर मन डोल रहा था। बार बार रास्ते में की गई शरारतें याद आने लगी थी।

इतने में कमली ने मुझे आवाज दी,"मामू सा... ये पीछे से डोरी बांध दो..."

मैं उसके पास गया तो मेरा शरीर सनसनी से भर गया। उसने एक तौलिया नीचे लपेट रखा था मर्दो वाली स्टाईल में... और एक छोटा सा ब्लाऊज जिसकी डोरियाँ पीछे बंधती हैं, बस यही था। मैंने पीछे जा कर उसकी पीठ पर अंगुलियां घुमाई...

"अरे हाँ मामू सा... आओ म्हारी पीठ माईने गुदगुदी करो... मजो आवै है..."

"तो यह... ब्लाऊज तो हटा दो !"

"चल परे हट रे... कोई दीस लेगा !" उसकी इस हाँ जैसी ना ने मेरा उत्साह बढ़ा दिया।

"अठै कूण है कम्मो बाई... बस थारो मामू ही तो है ना... और म्हारी जुबान तो मैं बंद ही राखूला !"

"फ़ेर ठीक है... उतार दे..." मैंने उसका छोटा सा ब्लाउज उतार दिया। फिर उसकी पीठ पर अंगुलियों से आड़ी तिरछी रेखाएँ बनाने लगा। उसे बड़ा आनन्द आने लगा। मेरा लण्ड कड़क होने लगा।

"मामू सा, थारी अंगुलियों माणे तो जादू है..." उसने मस्ती में अपनी आंखें बंद कर ली।

मैंने झांक कर उसकी चूचियां देखी। छोटी सी थी पर चुचूक उभार लिये हुये थे। अभी शायद उत्तेजना में कठोर हो गई थी और तन से गये थे। मैंने धीरे से अंगुलियां उसके चूतड़ों की तरफ़ बढा दी और उसके चूतड़ों की ऊपर की दरार को छू लिया। उसे शायद और मजा आया सो वह थोड़ा सा आगे झुक गई, ताकि मेरी अंगुलियाँ और भीतर तक जा सके। उसका बंधा हुआ तोलिया कुछ ढीला हो गया था। मैंने हिम्मत करके अपना दूसरा हाथ उसकी पीठ पर सरकाते हुये उसकी चूंचियों की तरफ़ आ गया और उसकी एक एक चूची को सहला दिया। कमली ने मुझे नशीली आंखों से देखा और धीरे से मेरी अंगुलियाँ वहां से हटा दी। मैंने फिर से कोशिश की पर इस बार उसने मेरे हाथ हटा दिये।

कुछ असमंजस में मुझे घूरने लगी ।

"बस अब तो घणा होई गयो ... अब... अब म्हारी अंगिया पहना दो..."

"अह ... अ हां लाओ" मुझे लगा कि जल्दबाजी में सब कुछ बिगड़ गया। उसने अपने चूतड़ तक तो अंगुलियां जाने दी थी... अब तो वो भी बात गई...। उसने अपना ब्लाऊज ठीक से पहना और भाग कर भीतर कमरे में बाकी के कपड़े पहनने चली गई।

रात को मैं कमली के बारे में ही सोच रहा था कि वो दरवाजे पर खड़ी हुई नजर आ गई।

"आओ कम्मो... अन्दर आ जाओ !" उसकी आँखों में जैसे चमक आ गई। वो जल्दी से मेरे पास आ गई।

"मामू सा... आपरे हाथ में तो चक्कर है... मने तो घुमाई दियो... एक बार और अंगुलियां घुमाई दो !" उसकी आँखों में लगा कि वासना भरी चमक है। मेर लण्ड फिर से कामुक हो उठा।

"पर एक ही जगह पर तो मजो को नी आवै... जरा थारे सामणे भी तो करवा लियो..." मैंने अपनी जिद बता दी। यदि चुदाई की इच्छा होगी तो इन्कार नहीं करेगी। वही हुआ...

"अच्छा जी... कर लेवो बस... " उसकी इजाजत लेकर मैंने उसे बिस्तर पर बैठा दिया और अपनी अंगुलियां उसके बदन पर घुमाने लगा। उसका ब्लाऊज मैंने उतार दिया और अपनी अंगुलियाँ उसकी चूचियों पर ले आया और उससे खेलने लगा। मेरे ऊपर अब वासना का नशा चढ़ने लगा था। उसकी तो आंखें बंद थी और मस्ती में लहरा रही थी। मेरा लण्ड कड़ा हो कर फ़ूल गया था। जब मुझसे और नहीं रहा गया तो मैंने दोनों हाथों से उसके बोबे भींच डाले और उसे बिस्तर पर लेटा दिया।

"ये कांई करो हो... हटो तो..." उसे उलझन सी हुई।

"बस कमली... आज तो मैं तन्ने नहीं छोड़ूंगा... चोद के ही छोड़ूंगा !"

"अरे रुक तो... यु मती कर यो... हट जा रे..." उसका नशा जैसे उतर गया था।

"कम्मो... तु पहले ही जाणे कि म्हारी इच्छा थारे को चोदवां की है ?"

"नहीं वो आप, मणे अटे दबावो, फ़ेर वटे दबावो... सो मणे लागा कि यो कांई कर रिया हो, फेर जद बतायो कि चोदवा वास्त कर रिओ है तो वो मती करो... माणे अब छोड़ दो... थाने म्हारी कसम है !"

मैंने तो अपना सर पकड़ लिया, सोचा कि मैं तो इतनी कोशिश कर रहा हू और ये तो चुदना ही नहीं चाहती है। मैंने उसका घाघरा और ब्लाऊज उतारने की कोशिश की। पर वो अपने आप को बचाती रही।

"मामू सा... देखो ना कसम दी है थाणे... अब छोड़ दो !" पर मेरे मन में तो वासना का भूत सवार था। मैंने उसका घाघरा पलट दिया और उसके ऊपर चढ़ गया और अपने लण्ड को उसकी चूत पर रगड़ने लगा। अब मैंने उसे अपनी बाहों में दबा कर चूमना चालू कर दिया। मेरा लण्ड उसकी चूत पर बहुत दबाव डाल रहा था। छेद पर सेटिंग होते ही लण्ड चूत में उतर गया। कमली ने तड़प कर लण्ड बाहर निकाल लिया।

"मां ... मने मारी नाक्यो रे... आईईई..." मैंने फिर से उसे दबाने की कोशिश की।

"देख कमली , थाने चोदना तो है ही... अब तू हुद्दी तरह से मान जा..."

"और नहीं मानी तो... तो महारा काई बिगाड़ लेगो..."

"तो फिर ये ले..." मैंने फिर से जोर लगाया और लण्ड सीधा चूत की गहराईयों में उतरता चला गया...।

"हाय्... मैया री माने चोद दियो रे... अच्छा रुक जा... मस्ती से चोदना !"

मैं एक दम से चौंक गया। तो ये सब नाटक कर रही थी... वो खिलखिला कर हंस पड़ी।

"कम्मो, जबरदस्ती में जो मजा आ रहा था... सारा ही कचरो कर मारा !"

"अबे यूं नहीं, म्हारे पास तो आवो, थारा लवड़ा चूस के मजा लूँ ... ध्हीरे सू करो... ज्यादा मस्ती आवैगी !" उसने मुझे अपने पास खींचा और मेरा फ़नफ़नाता हुआ लण्ड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मैं मस्ती में झूम हो गया, मैं अपनी कमर यूं हिलाने लगा कि जैसे उसके मुँह को चोद रहा हूँ। मेरे लण्ड को अच्छी तरह चूसने के बाद अब वो लेट गई। उसने अपनी योनि मेरे मुँह के पास ले आई और अपनी टांगें ऊपर उठा दी... उसकी सुन्दर सी फ़ूली हुई चूत मेरे सामने आ गई। हल्के भूरे बाल चूत के आस पास थे... उसकी चूत गीली थी... मैंने अपनी जीभ उसकी भूरी सी और गुलाबी सी पंखुड़ियों पर गीलेपन पर रगड़ दी, मुझे एक नमकीन सा चिकना सा अहसास हुआ... उसके मुख से सिसकारी निकल गई।

"आह्ह्ह मामू सा... मजो आ गयो... और करो..." कमली मस्ती में आ गई। मैंने अपनी जीभ उसकी गीली योनि में डाल दी। उसकी चूत से एक अलग सी महक आ रही थी। तभी उसका दाना मुझे फ़ड़फ़ड़ाता हुआ नजर आ गया। मैं अपने होठों से उसे मसलने लगा।

"ओई... ओ... मेरी निकल जायेगी ... धीरे से...चूसो... !" वो मस्ती में खोने लगी थी। हम दोनों एक दूसरे को मस्त करने में लगे थे...

तभी कमली ने कहा,"मामू सा लण्ड में जोर हो तो म्हारी गाण्ड चोद ने बतावो !"

"इसमें जोर री कांई बात है ... ढूंगा पीछे करो... और फ़ेर देखो म्हारा कमाल... !"

कम्मो ने पल्टी मारी और बिस्तर पर कुतिया बन गई। उसके दोनो सुन्दर से गोल गोल चूतड़ उभर कर मेरे सामने आ गये। मैंने उन्हें थपथपाया और दोनों चूतड़ हाथों से और अधिक फ़ैला दिए। उसका कोमल सा भूरा छेद सामने आ गया। मैंने पास पड़ी कोल्ड क्रीम उसकी गाण्ड के छेद में भर दिया और अपना मोटा सा लण्ड का सुपाड़ा उस पर रख दिया।

"मामू सा नाटक तो मती करो ... म्हारी गाण्ड तो दस बारह मोटे मोटे लण्ड ले चुकी है... बस चोदा मारो जी ... मने तो मस्ती में झुलाओ जी !"

मैं मुस्करा उठा... तो सौ सौ लौड़े खा कर बिल्ली म्याऊं म्याऊं कर रही है। मैंने एक ही झटके में लण्ड गाण्ड में उतार दिया। सच में उसे कोई दर्द नहीं हुआ, बल्कि मुझे जरूर लग गई। मैं उसकी गाण्ड में लण्ड अन्दर बाहर करने लगा। मुझे तो टाईट गाण्ड के कारण तेज मजा आने लगा। मेरी रफ़्तार बढ़ती गई। फिर मुझे उसकी चूत की याद आई। मैंने उसी स्थिति में उसकी चूत में लण्ड घुसेड़ दिया... सच मानो चूत का में लण्ड घुसाते ही चुदाई का मधुर मजा आने लगा। चूत की चुदाई ही आनन्द दायक है... कम्मो को भी तेज मजा आने लगा। वो आनन्द के मारे सिसकने लगी, कभी कभी जोर का धक्का लगता तो खुशी के मारे चीख भी उठती थी। उसके छोटे छोटे स्तनो को मसलने में भी बहुत आनन्द आ रहा था।

"मामू ... ठोको, मने और जोर सू ठोको ... म्हारी तो पहले सु ही फ़ाट चुकी है और फ़ाड़ नाको..."

"म्हारी राणी जी... मजो आ रियो है नी... उछल उछक कर थारे को ठोक दूंगा ... पूरा के पूरा लौड़ा पीव लो जी !"

"मैया री... लौड़ो है कि मोटो डाण्डो लगा राखियो है... मजो आ गियो रे... दे मामू सा ...चोद दे !"

मेरा लण्ड उसकी चूत में तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था। मेरा लण्ड में अब बहुत तरावट आ चुकी थी। वह फ़ूलता जा रहा था। उसकी चूत की लहरें मुझे महसूस होने लगी थी। उसने तकिया अपनी छाती से दबा लिया और मेरा हाथ वहाँ से हटा दिया।

तभी उसकी चूत लप लप कर उठी... "माई मेरी... चुद गई... हाई रे... मेरा निकला... मामू सा... मेरा निकला... गई मैं तो... उह उह उह।"

उसका रज छूट पड़ा। मेरा भी माल निकला हो रहा था। मैंने समझदारी से लण्ड बाहर निकाला और मुठ मारने लगा। एक दो मुठ मारने पर ही मेरा वीर्य पिचकारी के रूप में उछल पड़ा। लण्ड के कुछ शॉट ने मेरा वीर्य पूरा स्खलित कर दिया था। मैं पास ही में बैठ गया।

"तू तो लगता है खूब चुदी हो..."

"हां मामू सा... क्या करूँ ... मेरे कई लड़के दोस्त हैं... चुदे बिना मन नहीं लागे ... और वो छोरा ... हमेशा ही लौड़ा हाथ में लिये फिरे... फिर चुदने की लग ही जावे के नहीं !"

"तब तो आपणे घणी मस्ती आई होवेगी..." मैंने उसकी मस्ती के बारे पूछा।

" छोड़ो नी, बापु और बाई सा तो काले हांझे तक आ जाई, अब टेम खराब मती कर ... आजा... लग जा... फ़ेर मौका को नी मिलेगा !" उसके स्वर में ज्वार उमड़ रहा था।

अब हम दोनो नंगे हो कर बिस्तर पर लेट गये थे और प्यार से धीरे धीरे एक दूसरे को सहला रहे थे। जवान जिस्म फिर से पिघले जा रहे थे... जवानी की खुशबू से सरोबार होने लगे थे... नीचे छोटा सा सात इंच का कड़क शिश्न योनि में घुस चुका था। हम दोनों मनमोहक और मधुर चुदाई का आनन्द ले रहे थे। ऐसा लगता था कि ये लम्हा कभी खत्म ना हो... बस चुदाई करते ही जायें...

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मां गुदगुदी के मारे सिसकियाँ भरने लगी

रात आने को थी... मेरा दिल धड़कने लगा था। मुझे बहुत ही अजीब लग रहा था कि मेरी मां मेरे सामने ही चुदेगी ! कैसे चुदेगी ... आह्ह्ह चाचा का कड़क लण्ड भला अन्दर कैसे घुसेगा ? यह सोच कर तो मेरी चूत में भी पानी उतरने लगा था।

रात का भोजन मैं और मम्मी साथ साथ कर रहे थे।

"मम्मी, एलू अंकल अच्छे है ना... "

"हूं, बहुत अच्छे है ... प्यारे भी हैं !"

"प्यारे भी हैं ... क्या मतलब ... यानि आपको प्यारे हैं ?"

"अरे चुप भी रह ना, वो हमारा कितना ख्याल रखते हैं ... घर को अपना ही समझते हैं ना !"

"मम्मी ! उन्हें यहीं रख लो ना ... देखो ना उनका अपने अलावा और कौन है ? उनके तो कोई बच्चा भी नहीं है, बिल्कुल अकेले हैं... वो तो मुझे भी बहुत प्यार करते हैं।"

"हां, जानती हूँ... " फिर मुझे वो मुस्करा कर देखने लगी। खाना खाकर मैं अपने कमरे में चली आई। कुछ ही देर में चाचा आ गये। मम्मी ने मुझे कमरे में झांक कर देखा, उन्हें लगा कि मैं सो गई हूँ। वो चुपचाप अपने कमरे में चली गई और कमरा भीतर से बन्द कर लिया। मैंने अपने लिये लाईव शो का इन्तज़ाम पहले से ही कर रखा था। उनके दरवाजा बन्द करते ही मैं चुपके से कमरे से बाहर आ गई और खिड़की को ठीक से देखा। अन्दर का दृश्य साफ़ नजर आ रहा था। मेरा दिल धड़क रहा था कि मां की चुदाई होगी।

मां धीरे धीरे शरमाते हुए अंकल की तरफ़ बढ़ रही थी। उनके पास आ कर वो रुक गई और अपनी बड़ी बड़ी आंखों से उन्हें निहारने लगी।

"माया, तुम कितनी सुन्दर हो ... "

मां ने नजर नीची कर ली। अंकल ने आगे बढ़ कर मम्मी को प्यार से गले लगा लिया। मां तो जैसे उनसे चिपट सी गई। दोनों के लब एक दूसरे से मिल गये।

गहरे चुम्बनों का आदान प्रदान होने लगा। मां की लम्बाई चाचा के बराबर ही थी, मां के भारी भारी चूतड़ों को अंकल ने दबा दिया। मां के मुख से एक प्यारी सी आह निकल पड़ी। पजामे में से अंकल का लण्ड उभर कर बाहर निकलने हो हो रहा था। मम्मी ने एक बार नीचे उनके लण्ड को देखा और अपना पेटीकोट उनके लण्ड से टकरा दिया। अब वो अपनी चूत वाला भाग लण्ड पर दबा रही थी।

अंकल ने अपने दोनों हाथों से मम्मी की चूचियों को सहला कर दबा दिया। मम्मी सिमट सी गई।

"माया, मेरे लण्ड को प्यार करोगी... ?"

मम्मी धीरे से नीचे बैठ गई और उनके पजामे का नाड़ा खोल दिया। उसे धीरे से नीचे उतार दिया। अंकल का लण्ड बाहर आ गया। सुपाड़ा पहले से ही खुला हुआ था। मां ने मुस्करा कर ऊपर देखा और लण्ड को अपने मुख में डाल दिया। अंकल ने मस्ती में अपनी आंखें बन्द कर ली। अंकल के हाथ मां के ब्लाऊज को खोलने में लगे थे। मम्मी ने उनका लण्ड चूसना छोड़ कर पहले अपना ब्लाऊज उतार दिया।

हाय रे ! मम्मी के उरोज तो सच में बहुत सधे हुये थे। हल्का सा झुकाव लिये, चिकने और अति सुन्दर।

मम्मी ने फिर से उनका लण्ड अपने मुख में ले लिया और चूसने लगी। अंकल के हाथ मम्मी के बालों में चल रहे थे, उनके बाल खुल गये थे। उन्होने मां को अब उठा कर अब खड़ा कर लिया और उनके पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे नीचे गिरा दिया।

"माया, मुझे भी आप अपनी चूत को प्यार करने की इजाजत देंगी?"

पहले तो मां शरमा गई। फिर वो बिस्तर पर लेट गई और अपनी दोनों टांगें ऊपर खोल ली।

"हाय ... माया ... इतनी चिकनी, इतनी प्यारी ... लण्ड लगते ही भीतर फ़िसल जाये !"

"ऐसे मत बोलो, बस इसे चूम लो, फिर चाहे जो करो। भले ही उसे अन्दर उतार दो !"

मां को चुदने की बहुत लग रही थी, पर अंकल ने अपना मुख मम्मी की चूत पर लगा दिया। उनके दाने को उनके होंठों ने मसल दिया। मम्मी अपनी चूत उछालने लगी। मेरी चूत में भी यह देख कर पानी उतर आया। मैं अपने कमरे में से जा कर अंकल का दिया हुआ डिल्डो उठा लाई। पहले तो मैं अपनी चूत को दबाने लगी।

मां तो खुशी के मारे जैसे उछल रही थी। पर अंकल चूत से चिपके हुये उसका रस चूसने में लगे थे।

"अब तड़पाओ मत ... जैसा मैं कहूँ वैसा करो !"

"पीछे घूम जाओ, तुम्हारी चिकनी गाण्ड पहले मारूंगा !"

"ओह, तुम्हें गाण्ड मारना अच्छा लगता है... कोई बात नहीं ... दोनों तरफ़ छेद है, किसी को भी चोद दो ! पर पहले मुझे मुठ मार कर दिखाओ ना !"

"ओह, जैसी माया जी की इच्छा... "

चाचा नीचे बैठ गए और मुठ मारने लगे। मां बहुत ध्यान से मुठ मारते हुये देखने लगी। मां के मुख से बीच बीच में सिसकी भी निकल जाती थी। वो अपने कठोर लण्ड को मुठ मारते रहे और मां ने अपनी चूत घिसना चालू कर दिया।

जैसे ही अंकल का वीर्य छलक पड़ा। मां के मुख से भी सीत्कार निकल पड़ी।

"इसमें आपको बहुत मजा आता है ना... ?" उनके लण्ड को मां ने हिलाया, मां ने अंकल को अपने चिकने बोबे से लगा दिया और उसे उनकी छाती पर घिसने लगी।

"माया, अब तुम्हारी बारी है ... चलो शुरू हो जाओ !"

मां भी जमीन पर बैठ गई और अपनी चिकनी चूत को पहले तो सहलाने लगी। फिर चूत की धार को मसलने सी लगी। फिर मां ने अपना दाना उभार कर देखा और उसे मसलने लगी। फिर उन्होंने अपनी गीली चूत में अपनी अंगुली घुसा ली और आह भरते हुये हस्तमैथुन करने लगी। मां जल्दी ही झड़ गई, वो शायद पहले ही उत्तेजित थी।

मां के झड़ते ही अंकल मां की चूत का रस चूसने लगे। मां ने उन्हें अपनी जांघों के बीच दबा लिया।

"अब देखो, मैं तैयार हूँ, अब मैं तुम्हारी जम कर गाण्ड चोदूंगा... मजा आ जायेगा !"

मां ने घोड़ी बन कर अपनी सुडौल गाण्ड पीछे की ओर उभार दी। अंकल तो गाण्ड मारने में उस्ताद थे ही। उन्होंने धीरे से लण्ड गाण्ड में डाल दिया और मां मस्त हो गई। मुझे देखने में बहुत आनन्द आ रहा था। मम्मी की गाण्ड अंकल ने बहुत देर तक बजाया। मम्मी भी अंकल के स्खलित होने तक गाण्ड चुदाती रही।

मम्मी की गाण्ड मार कर अंकल सुस्ताने लगे।

"जूस पियोगे या दूध लाऊँ?"

"अभी तो दूध ही पियूंगा, फिर जूस... "

मां जैसे ही उठी दूध लाने के लिये, चाचा ने उन्हें फिर से गोदी में खींच लिया और उनकी चूचियों को अपने मुख से दबा लिया।

"कहां जा रही हो, दूध नहीं पिलाओगी क्या ?"

और मां को गुदगुदाते हुये दूध पीने लगे।

हुंह ... मां के खूब चूस चूस के पी रहा है ... मेरे तो चूसता ही नहीं है !

मां गुदगुदी के मारे सिसकियाँ भरने लगी।

"बहुत प्यारे हो एलू तुम तो ... कैसी कैसी शरारते करते हो... "

दोनों नंगे ही एक दूसरे के साथ खेल रहे थे... खेलते हुये उन दोनों में फिर से आग भरने लगी थी। अंकल का लण्ड फिर से फ़ुफ़कारने लगा था।

"अब देरी किस बात की है?" मां ने अनुरोध किया।

"बस हो गया ना ... अब कल के लिये तो कुछ छोड़ो !"

"बस एक बार, मेरे ऊपर चढ़ जाओ ... मुझे शांत कर दो !"

"कहीं कुछ हो गया तो ... ?"

"कुछ नहीं होगा, मेरा ऑप्रेशन हो चुका है ... अब तो आ जाओ !"

अंकल का चेहरा खिल गया। मां ने अपनी दोनों खूबसूरत सी टांगें उठा ली। अंकल उन टांगों के बीच में समा गये। कुछ ही पलों में अंकल का मोटा लण्ड मां की चूत को चूम रहा था। चाचा का लण्ड मां की चूत में घुसता चला गया। मां खुशी से झूम उठी। मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया, मैंने डिल्डो को धीरे से अपनी चूत में घुसा लिया, मुझे भी एक मीठी सी गुदगुदी हुई।

मेरी मां अपनी टांगें ऊपर उठा कर उछल उछल कर चुदवा रही थी। मेरा हाल इधर खराब होता जा रहा था। मां की मधुर चीखें मेरे कानों में रस घोल रही थी। दोनों गुत्थम-गुत्था हो गये थे। कभी अंकल ऊपर तो कभी मम्मी ऊपर ! खूब जम कर चुदाई हो रही थी। मां को इस रूप में मैंने पहली बार देखा था। वो एक काम की देवी लग रही थी। लगता था जिन्दगी भर की चुदाई वो दोनों आज ही कर डालेंगे।

तभी दोनों का जोश ठण्डा पड़ता दिखाई देने लगा। अरे ! क्या दोनों झड़ चुके थे? सफ़र की इति हो चुकी थी। वो दोनों झड़ चुके थे।

मैं अपने कमरे में आ गई और चूत में डिल्डो को फ़ंसा कर अन्दर बाहर करने लगी। साथ में अंकल को गालियाँ भी देती जा रही थी- साला, बेईमान, झूठा ! मम्मी को तो बुरी तरह चोद दिया और मुझे... हरामी घास भी नहीं डालता है।

अब किसे क्या बताऊं, मैं भी तो जवान हूँ, मुझे भी तो एक मोटा, लम्बा, कड़क ... हाय, हां ... बस आपके जैसा ही... ऐसा ही तो लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ना है। प्लीज आईये ना !!!



भईया, यह क्या कर रहे हो?

मैं आप लोगों को आज अपने जीवन की एक सच्ची कहानी बताने जा रहा हूँ।। मेरा नाम राहुल है और मैं एक बिज़नसमैन हूँ। मेरे घर में हम चार लोग हैं- पिताजी, माँ, मैं, और मेरी छोटी बहन !

बात आज से 4 साल पहले की है जब मैं बारहवीं कक्षा में था, मेरी बहन दसवीं में थी। मेरे पिताजी अक्सर घर देर से ही आते थे क्योंकि बिज़नस की वज़ह से उन्हें देर हो जाती थी और माँ ज्यादातर अपने घर के काम में या फिर टीवी देखने में व्यस्त रहती थी। मेरी बहन जिसका नाम रिया है अधिकतर पढ़ाई करती रहती थी।

मैंने कभी उसे गलत नज़र से नहीं देखा था। मगर एक दिन मैं अपने कंप्यूटर पर ब्लू फिल्म देख रहा था कि एकदम से रिया मेरे कमरे में आ गई मैंने उसको देखते ही कंप्यूटर बंद कर दिया मगर उसने सब देख लिया था लेकिन वो कुछ बोली नहीं। मैं उससे कुछ नहीं कह पाया, वो हिम्मत करके मेरे पास आई और बोली- भईया मुझे यह सवाल नहीं आ रहा, इसको हल करने में मेरी मदद करो। मैंने कहा- ठीक है !

लेकिन मैं उससे नज़रें नहीं मिला पा रहा था। मैंने उसका सवाल हल कर दिया। फिर वो जाने लगी तो मैंने उससे बोला- जो भी तुमने देखा है, वो किसी को मत बताना !

तो वो बोली- भईया, मैं किसी को नहीं बताउंगी पर यह सब अच्छी चीज़ नहीं हैं, आप मत देखा करो !

मैंने उससे कहा- ठीक है !

फिर वो चली गई लेकिन उस दिन मुझे उसे देख कर कुछ अजीब सा महसूस हुआ, मेरे दिल में उसके लिए गलत ख्याल आने लगे। मैं आपको बता दूँ कि रिया देखने में बहुत ही सेक्सी है। उसका फिगर 34-26-34 है, रंग हल्का साँवला है। जो भी उसको एक बार देख ले, उसका लंड अपने आप ही खड़ा हो जाए।

दो दिन बाद दोपहर के वक़्त माँ घर का काम निपटा कर सो रही थी और मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था। इतने में रिया आई और बोली- भईया उठो, मुझे एक सवाल समझ नहीं आ रहा, मुझे समझा दो।

तो मैं उठ कर उसे सवाल समझने लगा। लेकिन आज उसके मेरे पास बैठने से मुझे कुछ-कुछ हो रहा था, उसकी खुशबू मेरी साँसों में भर रही थी। मैं सवाल पर ध्यान नहीं लगा पा रहा था कि इतने में वो बोली- भईया, क्या बात है ?

तो मैं बोला- मुझे बहुत नींद आ रही है इसलिए मैं यह सवाल नहीं कर पा रहा हूँ !

तो वो बोली- भईया, नींद तो मुझे भी आ रही है ! ऐसा करते है ख़ी कुछ देर के लिए सो जाते हैँ, बाद में सवाल कर लेंगे।

इतना कह कर वो आपने कमरे की तरफ जाने लगी तो मैंने उससे कहा- रिया, कहां जा रही है? यहीँ पर सो जा ! थोड़ी देर में तो उठ कर सवाल करना ही है।

तो वो बोली- ठीक है !

फिर वो मेरे बगल में आकर सो गई। मैं भी सोने का नाटक करने लगा। लेकिन नींद तो आ ही नहीं रही थी। थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद मैंने आपना एक हाथ हिम्मत करके उसके चूचों पर रख दिया और कोई हरकत नहीं की ताकि उसको ऐसा लगे कि गलती से नींद में रखा गया हो।

थोड़ी ही देर में उसकी साँसें तेज चलने लगी। फिर मैंने हिम्मत करके उसकी टांग के बीच अपनी टांग फंसा दी। अब वो मेरी पकड़ में थी, उसकी साँसे बहुत तेज चल रही थी पर उसने अभी तक कोई विरोध नहीं किया तो मेरी हिम्मत बढ़ गई।

मैंने अपने हाथ से उसके चूचे मसलना चालू कर दिया, कुछ देर बाद वो बोली- भईया, यह क्या कर रहे हो?

तो मैंने उससे साफ़ साफ़ कह दिया- मैं तुझे प्यार करता हूँ और जब भी तू मेरे सामने आती है तो मैं अपने होश खो बैठता हूँ।

वो बोली- भईया, यह सब सही नहीं है ! अगर किसी को पता चल गया तो? और वैसे भी हम भाई-बहन हैं।

मैंने उससे कहा- किसी को पता नही चलेगा ! और भाई-बहन हैं लेकिन हैं तो लड़का-लड़की ! इतना तो सब में ही चलता है ! आखिर एक दिन तो तुम्हें किसी न किसी से चुदना ही है तो अपने भाई से ही क्यों नहीं !

इतना कह कर मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और पैंटी के अन्दर हाथ डाल कर उसकी चूत सहलाने लगा। वो सिसकारियाँ लेने लगी और साथ में हल्का सा विरोध भी कर रही थी। तो मैंने उससे कहा- तुम मेरा साथ दो तो तुम्हें बहुत मज़ा आएगा और घर की बात घर में ही रहेगी।

तो उसने करवट ली और मेरे चेहरे के सामने अपना चेहरा ला दिया और बोली- ठीक है, लेकिन किसी को पता नहीं चलना चाहिए !

मैंने उससे कहा- तू फिक्र मत कर !

फिर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और दस मिनट तक हम एक दूसरे के होंठ चूसते रहे। फिर उसके बाद मैंने उसका कुरता उतार दिया और फिर ब्रा भी उतार दी।

क्या क़यामत लग रहे थे उसके चूचे !

मैंने एक चूचे को मुँह में ले लिया और दूसरे को हाथ से मसल रहा था और उसकी सिसकारियाँ बढ़ती ही जा रही थी। फिर उसने मेरी पैंट खोल कर मेरा लंड पकड़ लिया और उसे अपने हाथ से दबाने लगी। मुझे लगा जैसे कि मैं जन्नत में पहुँच गया।

इतनी में मैंने उसकी जींस और पेंटी नीचे सरका दी। फिर उसने मेरी टी-शर्ट भी उतार दी। अब हम दोनों बिल्कुल नंगे एक दूसरे के बगल में लेटे थे। मैंने देर न करते हुए उसे अपनी बाहों में समेट लिया और कहा- मैं तुम्हारे बदन की गर्मी लेना चाहता हूँ, इसका अहसास लेना चाहता हूँ !

रिया बोली- केवल आप ही नहीं मैं भी यही चाहती हूँ !

उसका इतना कहना था कि मैं तो खुशी से पागल हो गया। फिर मैंने अपनी जीभ से उसका पूरा बदन चाटा, फिर मैं उसकी टांगों के बीच गया और उसकी गुलाबी पंखुड़ी वाली चूत मेरी आँखों के सामने थी। उसकी चूत में हल्के-हल्के बाल थे। मैंने जैसे ही अपनी जीभ उसकी चूत पर रखी, वो तो जैसे पागल ही हो उठी और उसके पूरे शरीर में एक करंट सा दौड़ गया।

वो बोली- भईया, मैं मर जाउंगी !

और मैंने उसकी चूत के अन्दर अपनी जीभ घुसा दी तो वो बोली- भईया, मुझे भी आपका लंड चूसना है !

तो हम 69 की मुद्रा में आ गए। अब हम दोनों 10 मिनट तक एक-दूसरे को ऐसे ही चूसते रहे और फिर हम दोनों एक एक करके झड़ गए। इसके बाद हम दोनों एक दूसरे के ऊपर लेट गए। थोड़ी ही देर में हम फिर से गर्म हो गए और मैं उसकी चूत में ऊँगली करने लगा तो वो बोली- भईया, अब नहीं रहा जाता ! अपना लंड अन्दर डाल दो !

मैं उसकी टांगो के बीच आ गया, उसकी चूत अभी कुँवारी थी और मैं उसे दर्द नहीं पहुँचना नहीं चाहता था, इसलिए मैंने पहले अपने लंड पर थोड़ा सा थूक लगाया, फिर उसकी चूत पर भी थूक से मालिश कर दी। मेरा लुंड सात इंच लम्बा और तीन इंच मोटा है।

उसके बाद मैंने अपना लंड रिया की चूत पर लगाया और हल्के-हल्के लंड को अन्दर करने लगा, पर जा नहीं रहा था इसलिए मैंने एक हल्का सा धक्का लगा दिया तो रिया जैसे तड़प सी गई और उसके मुँह से आह की आवाज़ निकल गई। मेरे लंड का सुपारा अन्दर जा चुका था। फिर मैं थोड़ी देर के लिए रुक गया और उसके चूचे मुँह में लेकर चूसने लगा। फिर थोड़ी देर बाद मैंने हल्के-हल्के लंड अन्दर डालना चालू किया और बीच बीच में हल्का सा धक्का भी मार देता था जिससे कि उसकी चीख निकल जाती थी। लेकिन मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख रखे थे जिससे उसकी चीख बाहर न जाये। अब तक मेरा पूरा लंड उसकी चूत में जा चुका था। उसकी चूत बहुत ही कसी थी और मैं हल्के-हल्के अपने लंड को अन्दर-बाहर करने लगा। शुरु में तो उससे थोड़ा दर्द हुआ पर फिर उसे भी मज़े आने लगे और वो अपनी गांड उठा उठा कर मेरा साथ देने लगी।

अब हम दोनों चुदाई का पूरा आनंद ले रहे थे। वो कह रही थी- भईया और जोर से !

मैं भी रिया से कह रहा था- देख ! बहन को अपने भाई से चुदने में कितना मज़ा आता है !

वो बोली- हाँ भईया, सही में बहुत मज़ा आ रहा है ! यह तो सबको करना चाहिए ! लेकिन दुनिया के ये झूठे रिवाज़ हमें रोके रखते हैं। भईया, मैं तो ये सोचती हूँ कि कोई भी किसी के साथ भी चुदाई कर सकता है। इससे क्या फर्क पड़ता है कि वो रिश्ते में क्या लगते हैं, आखिर वो हैं तो मर्द और औरत ही !

और हम ऐसे ही बातें करते करते चुदाई का आनंद लेते रहे। शायद रिया एक बार झड़ चुकी थी, अब मैं भी चरम सीमा तक पहुँच चुका था और फिर उसके बाद हम दोनों एक साथ एक दूसरे में समां गए और अपना अपना पानी एक दूसरे में मिला दिया और एक दूसरे को पूरी ताकत से पकड़ लिया।

फिर हम दस मिनट तक ऐसे ही पड़े रहे और उसके बाद बाथरूम में जा कर एक दूसरे को साफ़ किया। हम लोग उस वक़्त भी बिलकुल नंगे थे, मुझे रिया के चूतड़ दिखाई दिए बिल्कुल गोल-गोल और मुलायम ! बिल्कुल गोरे-गोरे और चिकने !

मेरा लंड फिर से जोर मारने लगा। मैं उसके पास गया और उसे अपनी बाहों में उठा लिया और ले जाकर उसे फिर से बिस्तर पर डाल दिया।

वो बोली- भईया, अब क्या?

मैंने उससे कहा- बहन, मुझे तेरी गांड मारनी है !

तो वो बोली- नहीं भईया ! मुझे बहुत डर लगता है, गांड मरवाने में तो बहुत दर्द होगा !

तो मैंने उससे कहा- मैं दर्द नहीं करूँगा, आराम आराम से करूँगा !

वो बोली- भईया, मार लेना मेरी गांड, लेकिन अभी नहीं, अभी बहुत देर हो गई है और माँ भी उठने वाली होगी हम गांड का प्रोग्राम किसी और दिन करेंगे।

मैं मान गया और उसके होठों का एक लम्बा चुम्मा लिया और उसके चूचे भी दबाये। फिर हम दोनों ने अपने कपड़े पहने और फिर रिया चाय बनाने चली गई।

मैंने और रिया ने मिलकर चाय पी। फिर वो अपने कमरे में चली गई।

मैंने रिया की गांड कैसे मारी, यह मैं अगली कहानी में बताऊंगा।

आप मुझे बताइए कि आपको मेरी कहानी कैसी लगी?

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भाभी तड़प गई

मेरा नाम अनिल है मैं कानून का छात्र हूँ। मेरी उम्र 23 साल है। अन्तर्वासना पर मैं एक अपनी सच्ची कहानी बताने जा रहा हूँ। यह कहानी ऐसी है जो आज तक मैंने अपने दिल में दबा कर रखी है और जिसे पढ़ कर सभी चूत और लंड पानी छोड़ देंगे ! जब बच्चे यह भी नहीं जानते कि मुठ मारना क्या होता है, मैं तब से और आज तक मुठ मारता आ रहा हूँ। जिससे मेरा लंड भी टेढ़ा हो गया है, तो तुम अंदाजा लगा सकते हो कि मैं कितना गुंडा हूँ !

बात उस समय की है जब मेरी जवानी पूरे जोश पर थी मेरा वीर्य निकलना शुरू ही हुआ था और कोमल-कोमल झांट आई थी और चूत मारने का इतंना मन करता था कि बस चूत हो ! कैसे ही हो !

मेरे बड़े भाई की शादी हुई, बड़ी सुंदर भाभी आई, नाम है मनोरमा, जिसके गोल-गोल चूचे, उठी हुई गांड है !

शुरू से ही मैं अपनी भाभी से एक हद तक मजाक करता था पर मैंने कभी उसके बारे में गलत नहीं सोचा। पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था ! भाई की रात की ड्यूटी लगी हुई थी, मम्मी और पापा भैंसों के प्लाट में सोते थे।

अब मम्मी बोलने लगी- अनिल बेटा, तेरे भाई की रात की ड्यूटी है, तू अपने कमरे में सोने की बजाय अपनी भाभी के साथ सो जाना, कभी वो अकेली डर जाये!

एक बार तो मैंने मना किया पर मम्मी के कहने पर तैयार हो गया। तब तक मेरा मन बिलकुल शुद्ध था और सोच रहा था कि डबल बेड है, एक तरफ मैं सो जाऊंगा और एक तरफ भाभी !

बस एक अजीब सी खुशी थी कि भाभी के बेड पर सोऊंगा !

अब भाभी ने सारा घर का काम खत्म कर लिया और आ गई सोने के लिए अपने बेड पर। मैं पहले से ही बेड पर था, भाभी बोली- अनिल, सो जाओ !

हमने लाइट बुझाई और सो गए, डबल बेड पर एक तरफ मैं और एक तरफ भाभी थी।

रात को लगभग बारह बजे मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि मेरा एक हाथ भाभी के चूतड़ पर था और मुँह भाभी के पैरों के तरफ था। बस वो पल मेरे लिए तूफान बनकर आया जिसने मेरी माँ समान भाभी मुझसे चुदवा दी।

अब मेरी नींद उड़ गई और मुझे अपनी भाभी एक लंड की प्यास बुझाने का जुगाड़ दिखने लगी। पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि कहाँ से शुरुआत करूँ !

कम से कम एक घंटा मैं एक अवस्था में ही लेटा रहा, जब तक भाभी गहरी नींद में थी।

अब मेरा सबर का बांध टूट गया, मैंने भाभी की तरफ करवट ली और अपना ग्यारह इंच का लंड भाभी की गांड क़ी दरार में धीरे से भिड़ा दिया। उस समय मैं बहुत डरा हुआ था, फिर धीरे से पैरों पर एक चुम्बन लिया ! उसके बाद मेरा कुछ होंसला बढ़ा कि भाभी कुछ नहीं बोल रही ! मेरे हिसाब से भाभी जग गई थी और आराम से मजा ले रही थी।

फिर मैं भाभी क़ी गांड से हाथ हटाकर पेट पर हाथ ले गया, पर मेरी गांड फट रही थी !

मैंने धीरे से कमीज़ ऊपर कर दिया और धीरे-धीरे सलवार के अन्दर हाथ ले गया, फिर कच्छी क़ी इलास्टिक ऊपर क़ी और भाभी क़ी चूत पर हाथ रख दिया। लगता था कि भाभी ने सात-आठ दिन पहले ही झांट काटी होंगी क्योंकि छोटे-छोटे बाल आ रहे थे जो मेरे हाथ में चुभ रहे थे !

भाभी ने एक अंगड़ाई ली और सीधी हो गई। मेरी गांड फट कर हंडिया हो गई, लेकिन वो कुछ नहीं बोली और सोने का नाटक करने लगी। मेरा लंड तन कर पूरा लक्कड़ हो रहा था। अब मेरा डर दूर था, मैंने भाभी का नाड़ा खोलकर सलवार और कच्छी उतार दी।

भाभी जग गई और बोलने लगी- अनिल, यह क्या बद्तमीजी है?

मैं बोला- भाभी, एक बार मुझे अपनी चूत में अपना लण्ड घुसाने दे ! यह बात किसी को नहीं पता चलेगी।

वो कहने लगी- अनिल, यह गलत है !

मैं भाभी क़ी अनसुनी करते हुए भाभी के होंठ चूसने लगा, अब भाभी भी गर्म हो गई थी और मेरा विरोध नहीं किया, इसलिए मैंने देर नहीं क़ी और भाभी क़ी चूत में उंगली डाल दी। चूत कुंवारी जैसी थी क्योंकि अभी मेरी भाभी एक बार भी गर्भवती नहीं हुई थी।

अब भाभी तड़प गई और कहने लगी- अनिल जल्दी कर !

मैंने अपना टेढ़ा लंड भाभी क़ी कोमल चूत पर रख कर जोर से धक्का मारा, एक ही धक्के में लंड तो अन्दर चला गया पर भाभी दर्द से तड़प गई और बोली- अनिल, तेरे टेढ़े लंड ने तो मेरी जान ले ली !

मैंने भाभी को जोर-जोर से धक्के मारे, भाभी तड़पती रही और अपनी गांड हिला कर मेरा साथ देती रही।

पंद्रह-बीस मिनट में पहले भाभी झड़ गई और फिर मैं !

उस रात मैंने भाभी को तीन बार चोदा !

भाभी सुबह जल्दी उठ गई और बोली- अनिल, यह बात मेरे और तुम्हारे बीच रहनी चाहिए !

मैंने कहा- ठीक है भाभी !

दोस्तो, अन्तर्वासना पर मेरी पहली और सच्ची कहानी कैसी लगी?

अगली कहानी में बताऊंगा कि किस तरह मेरी भाभी ने मुझे फंसवा दिया !

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राधा और रजनी

यह मेरी पहली कहानी है। जब मेरी उम्र 18 साल की थी, मैं अपने गाँव में शादी में गया हुआ था। वहां पर रजनी भी आई हुई थी लेकिन उससे मेरी कभी बात नहीं होती थी। उसके स्तन मुझे बहुत हो प्यारे लगते थे जो मैंने नहाते समय देख लिए थे- जब वो नहाने के लिए बाथरूम में गई तो थोड़ी देर बाद में ही घुस गया क्योंकि बाथरूम के गेट में कुण्डी नहीं थी वो केवल पैंटी में ही थी।

मई का महीना चल रहा था, गर्मियों के दिन थे। सभी लोग रात में छत पर सोते थे। घर में भी मेहमान आये हुए थे। एक दिन रजनी अनजाने में मेरे बगल में आकर लेट गई। तब रात के 11 बज रहे थे, मुझे अब नींद नहीं आ रही थी। एक बज चुका था, सभी लोग सो चुके थे, वो भी सो गई थी। उसने फ़्रॉक पहनी हुई थी और सोते समय उसकी फ़्रॉक काफी ऊपर आ गई थी। अब उसे देख कर मेरा लंड खड़ा होने लगा। मैंने डरते हुए उसकी पैंटी को छुआ तो कोई हलचल नहीं हुई क्योंकि वो सो रही थी। अब मेरी हिम्मत और बढ़ गई। अब मैंने उसकी चूत को पैन्टी के ऊपर से सहलाना शुरू कर दिया। उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैंने उसकी पैन्टी के अन्दर हाथ डाला। उसकी चूत के ऊपर बाल थे। अब मैं उसकी चूत को सहला रहा था और उसके छेद में ऊँगली डालने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसकी चूत बहुत कसी हुई थी।

तभी उसने एकदम करवट ली, मैं एकदम डर गया और सोने का नाटक करने लगा। लेकिन वो अब भी सो ही रही थी। थोड़ी देर बाद मैं मुठ मार कर सो गया।

सुबह जब मेरी नींद खुली तो वो मुझसे पहले उठ चुकी थी। अब मेरा दिन नहीं कट रहा था और रात का इंतजार कर रहा था।

जब रात हुई तो वो कल की तरह ही सोने के लिए आई लेकिन उसके और मेरे बीच में मेरे ताउजी की बेटी राधा आकर लेट गई। राधा मुझसे एक साल बड़ी थी। मैं रात को सोना नहीं चाहता था। रजनी सो चुकी थी और राधा भी।

तभी मैंने राधा के ऊपर से हाथ डाल कर जैसे ही रजनी को छुआ तो राधा के स्तन मेरे हाथ से दब रहे थे। इसी वजह से राधा की नींद खुल गई और वो सोने का नाटक करने लगी थी। अब मैंने जैसे ही रजनी की पैन्टी में हाथ डाला तो राधा ने अपनी आँखे खोल दी। उसे जगता देखकर मैं डर गया लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और थोड़ी देर बाद वो उठकर मेरी दूसरी तरफ आ गई अब मैं समझ गया कि वो क्या कहना चाहती है। उसने मेरा रास्ता साफ कर दिया। अब मैं आसानी से रजनी की चूत सहला रहा था।

लेकिन थोड़ी देर बाद राधा ने अपना हाथ मेरे लंड के ऊपर रख दिया। मुझे यह समझते देर नहीं लगी कि वो क्या चाहती है। अब राधा मुझसे चिपक गई थी और वो काफी गरम लग रही थी। उसने अपना कमीज़ खुद ही ऊपर कर दिया लेकिन वो मेरी बहन थी इसलिए मुझे बहुत डर लग रहा था। पर उस वक्त मुझे केवल चूत ही दिख रही थी। मैं राधा की चूत को सलवार के ऊपर से सहला रहा था और उसके स्तन चूस रहा था क्योंकि उसने अपना कुर्ता खुद ही ऊपर कर लिया था।

थोड़ी देर बाद मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोला तो राधा ने पैन्टी नहीं पहनी थी। उसने कहा कि वो सूट के साथ पैन्टी नहीं पहनती है। उसकी भी चूत पर बहुत बाल थे। अब मैं उसकी चूत के दाने को सहला रहा था, बीच बीच मैं उसके छेद में उंगली भी डाल देता था। उसकी चूत रजनी की तरह कसी हुई नहीं थी। तो उसने बताया कि वो चुपचाप मोमबत्ती अन्दर डालती थी।

थोड़ी देर बाद उसकी चूत में से पानी निकलने लगा। अब उसने मुझसे कहा कि उसकी चूत को अब लंड की जरुरत है।

राधा ने अपनी सलवार और नीची कर दी और अब मैं उसके ऊपर था और अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ रहा था लेकिन वो बहुत ही उतावली हो रही थी चुदने के लिए !

मैंने अपना लंड उसकी चूत में डाला तो उसके मुँह से अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह की आवाज निकली और मैं उसको लगातार चोदने में लगा हुआ था। थोड़ी देर बाद वो झड़ गई और मैंने भी अपना पूरा वीर्य उसकी चूत में छोड़ दिया। फिर हम लोगों ने अपने कपड़े सही किये और बातें करने लगे। रात के तीन बज चुके थे।

अचानक रजनी ने करवट बदली और उसका एक पैर मेरे ऊपर था वो भी बहुत गरम हो रही थी। मैंने फिर रजनी की चूत को सहलाना शुरू कर दिया।

तब राधा ने कहा- मैं तुझे रजनी की चूत भी दिलवाऊंगी।

अब तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना न था। थोड़ी देर तक हम लोग चूमा-चाटी करके सो गए।

सुबह राधा ने मुझे कहा- मैं रजनी को दोपहर में ऊपर के कमरे में ले आऊअगी और तुम कमरे में छुप जाना। जब मैं इशारा करूं तो तुम बाहर निकल आना !

वही हुआ। दोपहर में मैं कमरे में छुप गया तो वो दोनों कपड़े बदलने लगी। यह सब राधा का नाटक था।

उसने रजनी को कहा- हमें कहीं जाना है इसीलिए ऊपर कमरे में कपड़े बदल ले !

जब रजनी ने अपने कपड़े उतारे तो मैं उसका बदन देखकर दंग रह गया। उसका शरीर तो मानो एकदम मक्खन की तरह लग रहा था। वो सिर्फ ब्रा और पैन्टी में ही थी।

तभी राधा ने उसकी एक चूची को दबा किया। इस पर उसने भी राधा की दोनों चूचियां मसल दी। राधा तो यही चाहती थी कि रजनी यह सब करे।

अब वो दोनों एक दूसरे के स्तन दबा रही थी कि तभी राधा ने रजनी की पैन्टी उतार दी और खुद भी नंगी हो गई। अब वो दोनों एक दूसरे की चूत में ऊँगली डाल रही थी।

तभी रजनी ने कहा- काश ! यहाँ कोई लड़का होता तो कितने मजे आते !

तो राधा ने मुझे इशारा किया तो मैं बाहर आ गया। मुझे वह देखकर रजनी को शर्म आने लगी और अपनी चूत को अपने हाथों से छुपाने लगी। लेकिन तब तक वो मेरी बाहों में थी और मैं उसको गालों और होंठों को चूम रहा था। मेरा एक हाथ रजनी के वक्ष पर था और दूसरा उसकी चूत पर !

उसकी चूत से पानी निकल रहा था। मैं समझ गया कि वो चुदाने के लिए तैयार है।

अब मैंने उसको बेड पर लिटाया और उसकी चूत पर लंड रगड़ने लगा। फिर जैसे ही मैंने अपने लंड को झटका दिया तो वो थोड़ा सा उसकी चूत में चला गया। वो रोने लगी और बोली- प्लीज, बाहर निकालो बहुत दर्द हो रहा है !

मैं उसकी एक नहीं सुन रहा था। थोड़ी देर में मेरा पूरा लंड उसकी चूत में था। मैं बिल्कुल शांत था ताकि उसका दर्द कुछ कम हो जाये।

जब वो कुछ शांत हुई तो मैंने उसको चोदना शुरू किया। उसे भी अब अच्छा लग रहा था। राधा भी अपनी चूत में उंगली डाल के शांत हो गई थी।

थोड़ी देर में मैंने वीर्य से उसकी चूत भर दी थी। जब मैंने देखा तो वहाँ पर खून पड़ा था और रजनी की चूत भी खून से लाल थी।राधा ने बाद में यह सब साफ किया।

फिर जब भी मौका मिलता तो मैं अपनी बहन राधा की चुदाई करता।

2-3 दिन में रजनी अपने घर जा चुकी थी लेकिन उसको मैंने 3-4 बार चोद लिया था।

हम लोग भी अपने घर पर आ गए। राधा और मेरा चुदाई का सिलसिला आज भी है।

आपको मेरी सच्ची कहानी कैसी लगी? मुझे जरूर बतायें !

agrah_sharma@yahoo.com